भारत का दो ऐसा रेलवे स्टेशन जहां से पैदल भी जा सकते हैं विदेश , अगर यकीन ना हो तो पढ़े पूरी खबर
नई दिल्ली , 01-01-2024 6:50:03 AM
नई दिल्ली 01 जनवरी 2024 - देश में ऐसे कई रेलवे स्टेशन हैं, जो अपनी कई खासियतों के लिए जाने जाते हैं। कोई रेलवे स्टेशन अपने सबसे बड़े प्लेटफॉर्म के लिए मशहूर है, तो कई स्टेशन ऐसे हैं, जो अपनी स्वच्छता के लिए दुनियाभर में मशहूर है। लेकिन अगर हम बात करें ऐसे स्टेशन की, जहां से उतरकर आप पैदल विदेश पहुंच सकते हैं। तब आप क्या कहेंगे? शायद आपका भी दिमाग घूम गया होगा, सोच रहे होंगे आखिर ऐसा कौन सा रेलवे स्टेशन हैं, जहां से पैदल भी दूसरे देश तक पहुंचा जा सकता है।
तो बता दें की यह रेलवे स्टेशन बिहार के अररिया जिले में स्थित है, वहीं दूसरा रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल में पड़ता है। चलिए आपको इन रेलवे स्टेशनों के बारे में बताते हैं, साथ ही ये भी बताते हैं आखिर कौन से देश आप पैदल पहुंच पाएंगे।
अभी तक आप भारत के आखिरी गांवों के बारे में जानते होंगे, जैसे उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम के पास स्थित माणा गांव और नार्थ ईस्ट के एक गांव को देश के आखिरी विलेज में गिना जाता है। लेकिन जगह ही नहीं, कुछ ऐसे रेलवे स्टेशन भी हैं, जो भारत के आखिरी रेलवे स्टेशनों के रूप में प्रसिद्ध हैं। सबसे पहले अगर बात करें बिहार की तो यहां के अररिया जिले में एक ऐसा रेलवे स्टेशन है, जहां से उतरकर आप पैदल ही नेपाल पहुंच सकते हैं।
अररिया जिले में स्थित इस रेलवे स्टेशन का नाम जोगबनी स्टेशन है, जिसे देश के आखिरी स्टेशन के रूप में देखा जाता है। बता दें, यहां से नेपाल की दूरी नाम मात्र की रह जाती है, ये देश यहां से इतना पास पड़ता है कि लोग पैदल चल कर भी पहुंच सकते हैं। अच्छी बात तो ये है, नेपाल जाने के लिए भारत के लोगों को वीजा या पासपोर्ट की भी जरूरत नहीं पड़ती।
बिहार ही नहीं पश्चिम बंगाल में भी एक ऐसा रेलवे स्टेशन है, जिसे देश के आखिरी रेलवे स्टेशन के रूप में जाना जाता है। पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के हबीबपुर इलाके में बना सिंहाबाद स्टेशन देश की आखिरी सीमा में स्थित है। बता दें, ये रेलवे स्टेशन बांग्लादेश की सीमा के काफी ज्यादा पास है। मतलब न केवल बिहार के जोगबनी रेलवे स्टेशन से आप नेपाल पहुंच सकते हैं, बल्कि पश्चिम बंगाल से भी आप बांग्लादेश के लिए जा सकते हैं।
अंग्रेजों के शासन के दौरान बना सिंहाबाद स्टेशन लंबे समय तक काफी वीरान पड़ा रहा था। लेकिन, आज भी इसकी तस्वीर वैसी की वैसी ही है। आजादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ था, उसके बाद से इस स्टेशन का काम बंद कर दिया गया था। तब से ये स्टेशन लंबे समय से सुनसान और वीरान पड़ा रहा।
इस स्टेशन पर सिग्नल और स्टेशन से जुड़े उपकरण भी काफी समय से बदले नहीं गए हैं। बल्कि यहां सिग्नलों के लिए हाथ के गियरों का इस्तेमाल किया जाता है। रेलवे के कर्मचारी भी यहां नाम के ही हैं। यहां का टिकट काउंटर भी बंद हो चुका है, केवल मालगाड़ियां ही सिग्नल का इंतजार करती हैं।



















