छत्तीसगढ़ - दलबदल करने वाले इन 13 विधायकों का चौपट हुआ राजनीतिक कैरियर , गुम हुए अंधेरे में
रायपुर , 22-10-2023 7:48:16 PM
रायपुर 22 अक्टूबर 2023 - राजनीति में दलबदल आम बात हो गई है, लेकिन हम बात कर रहे हैं वर्ष 2001 की। छत्तीसगढ़ नया राज्य बने हुए अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था कि एक के बाद एक भाजपा के 13 विधायकों ने पाला बदल लिया। एक ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के लिए विधायकी छोड़ दी तो बाकी 12 दलबदल कर कांग्रेस सरकार में शामिल हो गए।
सरकार में गए तो कुछ को मंत्री पद मिला और लगभग दो साल तक सरकारी सुविधा का लाभ उठाया, लेकिन अलगे ही विधानसभा (2003) चुनाव में जनता ने इन्हें नकार दिया। 12 में केवल एक ही विधायक 2003 का चुनाव जीत पाया। लेकिन सत्ता का सुख इनमें से किसी को नहीं मिल पाया।
दलबदल करने वाले 12 विधायकों और राम दयाल उइके अब तक सत्ता का सुख नहीं मिला है। इन 13 में से 9 को 2003 के चुनाव मे टिकट मिला। 7 हार गए। पाली तानाखार से उइके और रायगढ़ से शक्रजीत नायक चुनाव जीते, लेकिन तब कांग्रेस विपक्ष में चली गई। नायक 2008 में भी कांग्रेस की टिकट पर जीते, लेकिन सत्ता का सुख नहीं मिला। उइके 2008 और 2013 दोनों चुनाव कांग्रेस की टिकट पर जीते लेकिन कांग्रेस सत्ता से बाहर रही। 2018 का चुनाव उइके भाजपा की टिकट पर लड़े लेकिन हार गए।
जानिए...दलबदल करने वाले 12 विधायकों की कहानी
तरुण चटर्जी : 1980 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार रायपुर ग्रामीण से जीत दर्ज की थी। 1998 तक वे इस सीट से लगातार विधायक रहे। कांग्रेस छोड़कर वे जनता दल और फिर भाजपा में शामिल हुए। रायपुर के महापौर भी रहे। दलबदल करने के बाद जोगी सकरार में पीडब्ल्यूडी मंत्री बने। लेकिन 2003 में हार गए। इसके बाद वे राजनीति से ही किनारे हो गए।
गंगूराम बघेल : आरंग से 1993, 1998 में भाजपा के टिकट से जीते थे। दलबदल कर जोगी शासन में मंत्री बने। 2003 में कांग्रेस के टिकट से लड़े तो चुनाव हार गए।
मदन डहरिया : 1998 में मस्तूरी से भाजपा विधायक चुने गए थे। दलबदल किया। इसके बाद 2003 और 2008 में वे कांग्रेस के टिकट से लड़े, लेकिन हार गए।
श्यामा ध्रुव : कांकेर से भाजपा के टिकट पर 1998 में चुनाव जीती। 2003 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव हार गई।
प्रेम सिंह सिदार : लैलूंगा से 1993 और 1998 में भाजपा के टिकट से जीते थे। दलबदल करने के बाद 2003 में कांग्रेस से लड़े और हार गए।
लोकेन्द्र यादव : 1998 में भाजपा से बालोद में चुनाव जीते थे। कांग्रेस में आने के बाद 2003 में हार का सामना करना पड़ा। 2008 में फिर दल बदला और सपा के टिकट से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए थे।
विक्रम भगत : 1984 में भाजपा के टिकट से जशपुर के विधायक बने। वे यहां के लगातार चार बार विधायक रहे। जोगी शासनकाल में कांग्रेस में शामिल हुए। इसके बाद 2003 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा और हार गए।
डॉ. शक्राजीत नायक : 1998 में भाजपा के टिकट से सरिया सीट से जीते। जोगी सरकार में मंत्री बने। 2003 और 2008 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीते। 2013 में हार गए।
डॉ. हरिदास भारद्वाज : 1998 से भटगांव से भाजपा के टिकट से जीते। 2008 में कांग्रेस से सरायपाली से जीते। 2013 में कांग्रेस के टिकट से लड़े और हार गए।
रानी रत्नमाला : चंद्रपुर से 1998 में भाजपा से जीतीं। कांग्रेस में चली गईं, फिर चुनाव ही नहीं लड़ीं।
डॉ. सोहनलाल : सामरी सीट से 1998 में भाजपा के टिकट से चुनाव जीते। इसके बाद इन्हें टिकट ही नहीं मिला।
परेश बागबाहरा : 1999 उपचुनाव में भाजपा के टिकट से विधायक चुने गए थे। दलबदल के आठ साल बाद यानी 2008 में कांग्रेस ने इन्हें खल्लारी से चुनाव लड़ाया और इन्होंने पार्टी को जीत दिलाई, लेकिन अगला चुनाव नहीं जीत पाए। इसके बाद बागबाहरा जनता कांग्रेस से जुड़े और वहां से भाजपा में शामिल हो गए।



















