सक्ती में कब और कैसे शुरू हुआ सट्टे का कारोबार , कौन था इसका मास्टरमाइंड , जानने के लिए पढ़े पूरी खबर,,
सक्ती , 17-03-2024 7:31:15 PM
सक्ती 17 मार्च 2024 - सट्टे के काले कारोबार के लिए जिले ही नही पूरे प्रदेश में बदनाम हो चुके सक्ती शहर में कब और कैसे शुरू हुआ सट्टे का गोरखधंधा और कौन था इसका मास्टरमाइंड अगर इस सवाल का जवाब जानना है तो इसके लिए साल 1992 में जाना पड़ेगा।
वर्ष 1992 में अविभाजित मध्य प्रदेश में जब सुंदर लाल पटवा की सरकार आई तब राज्य में लॉटरी शुरू हुई मध्य प्रदेश में तीन लॉटरी योजनाएँ थीं जिनके तहत सोमवार से रविवार तक दैनिक ड्रा निकाला जाता था। पहली योजना एमपी डेली थी जिसकी कीमत दो रुपये प्रति टिकट थी और विजेता पुरस्कार 01 लाख रुपये था। दूसरी योजना एमपी डीलक्स थी जिसकी कीमत पाँच रुपये प्रति टिकट थी और विजेता पुरस्कार 05 लाख रुपये था। तीसरी योजना एमपी सुपर थी जिसकी कीमत बीस रुपये प्रति टिकट थी और विजेता पुरस्कार 10 लाख रुपये था।
मध्यप्रदेश में लॉटरी शुरू होते ही खरीदने वालों की बाढ़ आ गई लिहाजा टिकट कम पड़ने लगे इसके बाद सक्ती के लॉटरी विक्रेताओं ने आखरी के तीन अंकों को कागज में लिख कर दांव लगवाने लगे जिसे सिंगल , जोड़ी और झालर का नाम दिया गया था। कुछ साल चलने के बाद लॉटरी बंद हो गई लेकिन नंबर लिखने का धंधा जारी रहा।
चूंकि सक्ती सहित छत्तीसगढ़ के लोगो को लॉटरी की लत लग चुकी थी ऐसे में सक्ती के एक शातिर ने बॉम्बे मटका में दांव लगवाना शुरू किया उसके बाद भूतनाथ , कल्याण जैसे मटके भी सक्ती में संचालित होने लगी कुछ ही साल में सट्टे का यह काला कारोबार इतना फैल गया जिस पर लगाम लगाना अब मुश्किल हो गया।
सट्टा के कारोबार में देखते ही देखते यह शातिर रोडपति से लखपति बन गया जिसके बाद उसे यह धंधा छोटा लगने लगा फिर शुरू हुआ क्रिकेट सट्टा जिस पर दांव लगवा कर यह लखपति करोड़पति बन गया और लोग कंगाल के कंगाल रह गए।



















