सक्ती - याद आता है 1980 का वो सुनहरा दौर, जब सिर्फ एक कि तूती बोलती थी और आज..
सक्ती 05 अक्टूबर 2025 - सक्ती शहर में शनिवार को जो भी हुआ उसकी जितनी निंदा की जाय वो कम है। लेकिन कहते है ना जो होता है वो अच्छे के लिए होता है ऐसे में शनिवार को जो भी हुआ ठीक ही हुआ होगा। अब शनिवार को सक्ती में क्या हुआ उसे लिखने या बताने की जरूरत नही है क्योंकि की इस बात से सक्ती की जनता भलीभांति वाकिफ है।
अब इसे और क्या कहा जाय कि कुछ लोग आईने में अपनी शक्ल देख कर आईना तोड़ रहे है इसमें आईने का क्या दोष जब शक्ल ही खराब हो। बदलते परिवेश में पत्रकारिता करना उतना ही मुश्किल हो गया है जितना कि आसमान से तारे तोड़ कर लाना। बीजापुर में खोजी पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या भी निष्पक्ष पत्रकारिता का अंजाम है क्योंकि मुकेश चंद्राकर ने सच को सामने लाया और उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई। कोई बड़ी बात नही की मुकेश चंद्राकर जैसा हाल कल मेरा भी हो सकता है वो इसलिए कि मैं भी लगातार सच्चाई को सामने ला रहा हूं।
आज हुई सक्ती में घटना के बाद मुझे सन 1980 का वो सुनहरा दौर याद आ रहा है जब पूरे शहर में सिर्फ एक कि ही तूती बोलती थी बाकी के सब खामोश रहते थे आज वो महान शख्स हमारे बीच नही है लेकिन जिस किसी ने भी उस दौर को देखा होगा वो आज की घटना के बाद उस महान हस्ती को याद जरूर कर रहा होगा क्योंकि आज का वाक्या हर उस ब्यक्ति के आत्म सम्मान पर कड़ा प्रहार है जो सच के साथ खड़ा है। सच की इस लड़ाई में कलम तो मेरे हाथ है ही अगर इस लड़ाई में कलम छोड़ मशाल उठानी पड़े तो उससे भी परगेज नही।
क्योंकि मेरी लड़ाई किसी ब्यक्ति विशेष या सिस्टम के साथ नही बल्कि मेरे स्वयं के साथ है कि आखिर क्यों मैंने अच्छे खासे ब्यापार और मीडिया की नौकरी को छोड़ कर सच सामने लाने का बीड़ा उठाया। अब अग्निपथ पर कदम बढ़ा दिया है तो पीछे हटने से तो रहा चाहे अंजाम कुछ भी हो मेरे कदम आगे बढ़ते ही जायेंगे। बाकी ऊपर वाले कि मर्जी की वो सफलता दे या फिर मौत..।


















