सक्ती - आयुष शर्मा ने कार्तिक पूर्णिमा की दी शुभकामनाएं , बताया कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
स्पॉन्सर्ड , 2024-11-15 01:10:28
सक्ती 15 नवंबर 2024 - विप्र फाउंडेशन के जिलाध्यक्ष आयुष शर्मा "अन्नपूर्णा" ने प्रदेश वासियों को कार्तिक पूर्णिमा पर बधाई और शुभकामनाएं दी है। इस अवसर पर आयुष शर्मा "अन्नपूर्णा" ने सभी प्रदेशवासियों के सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की है।
आयुष शर्मा "अन्नपूर्णा" ने बताया कि हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का खास महत्व माना गया है और इस दिन गंगा स्नान किया जाता है. स्नान के बाद दान करना बहुत ही फलदायी होता है. साथ ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. इस दिन लोग व्रत-उपवास रखते हैं और मान्यता है कि यह व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पाप व कष्ट मिट जाते हैं. साथ ही सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।
आयुष शर्मा "अन्नपूर्णा" ने कहा कि पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था. उसके तीन पुत्र थे- तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. तारकासुर ने धरती व स्वर्ग पर आतंक मचा रखा था और इससे परेशान होकर देवताओं ने भगवान शिव से उसका अंत करने की प्रार्थना की. जिसके बाद भगवान शिव ने तारकासुर का वध किया और इससे देवता बड़े प्रसन्न हुए. लेकिन उसके तीनों पुत्रों को यह सुनकर बड़ा दुख हुआ और उन्होंने इसका बदला लेने के लिए ब्रह्माजी की तपस्या की।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने तीनों से वरदान मांगने को कहा. तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा. इसके बाद तीनों ने किसी दूसरे वरदान के बारे में सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा- जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूम सकें. एक हजार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो. ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया. तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया. तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया. इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए. इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
इस दिव्य रथ की हर एक चीज देवताओं से बनीं. चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने. इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बनें. हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें. भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोंक बने अग्निदेव. इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव. भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया. इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा।