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ताड़ी का सीजन केवल चार महीने का , तो फिर कैसे बिक रही 365 दिन ???

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ताड़ी का सीजन केवल चार महीने का , तो फिर कैसे बिक रही 365 दिन ???

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मध्य प्रदेश
झाबुआ 18 अप्रैल 2023 - झाबुआ से एकदम सटे पड़ोसी जिले धार के टांडा क्षेत्र में जहरीली ताड़ी पीने से तीन लोगों की मौत होने का दुखद हादसा कई तरह के संदेश दे रहा है। नशे के चक्कर में परिवार बर्बाद हो रहे हैं, जबकि तंत्र सिर्फ तमाशा देख रहा है। ताड़ी का सीजन मोटे तौर पर चार माह का रहता है, लेकिन जिला मुख्यालय झाबुआ में प्रशासन के ठीक नाक के नीचे 365 दिन ताड़ी बिकती है। जाहिर-सी बात है कि ताड़ी के नाम पर बिकने वाला सफेद रंग का यह सस्ता नशा किसी बड़े हादसे की आशंका पैदा कर रहा है। प्रशासन चाहे इससे बेखबर हो या अनदेखा कर रहा हो, लेकिन तय है कि गरीबों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। पिछले कुछ सालों में ताड़ी का व्यापार तेजी से इस जिले में बढ़ा है।

जब सर्दी तेज होती है, तब दिसंबर के अंतिम दिनों से ताड़ी की आवक शुरू होती है। लगभग चार माह तक इसका सीजन रहता है। इसके बाद यह पेड़ से नहीं निकलती है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि झाबुआ में 365 दिन ही ताड़ी मिलती है। नशा करने वाले इसके लिए बस स्टैंड के पीछे जमे रहते हैं। बताया जाता है कि ताड़ी के नाम पर नकली नशीला पदार्थ तैयार किया जाता है। सस्ता व प्रभावी होने से नशेड़ी इसका उपयोग करते हैं।

2008 में जब झाबुआ और आलीराजपुर जिले अलग-अलग हुए तो ताड़ी का नाम भी झाबुआ जिले से दूर चला गया। वजह यह रही कि ताड़ी के पेड़ जिले में नहीं के बराबर हैं। केवल रंगपुरा में कुछ पेड़ हैं, मगर ज्यादा ताड़ी उससे हो नहीं पाती है। मुख्य रूप से ताड़ी आलीराजपुर जिले की ही पहचान है।

झाबुआ से ताड़ी के लिए न्यूनतम 20-25 किमी की दूरी तय करके रानापुर के आगे जाना पड़ता है, जबकि ताड़ी की मांग इधर बहुत अधिक है। समय के साथ उसकी चाहत बढ़ती जा रही है। इसी बिंदु ने एक नए व्यापार के दरवाजे खोल दिए। सीजन में कुछ लोग अलसुबह मोटर साइकिल पर बड़े-बड़े कैन टांगकर निकल पड़ते हैं और ताड़ी लाकर झाबुआ व आसपास के स्थानों पर बेचने लगे हैं। इससे उन्हें मुनाफा हो रहा है और नशा करने वाले अपनी ताड़ी पीने की चाहत भी आसानी से पूर्ण कर रहे हैं।
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